अगर ईश्वर मुझे पुराना वक्त दे तो
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प्राइमरी स्कूल में पढाई कब शुरू हुई पता तो नही है पर इतना जरूर है कि मेरी परीक्षा हुई थी कि मेरे हाथ, कान को सर के ऊपर से छू पा रहे हैं या नही। क्योंकि तब पैदाइश का सार्टिफिके
ट नही बनता था। तो बच्चों का जन्मतिथि या तो जुलाई होता था या तो मार्च या फिर जनवरी। ये राज जब फेसबुक पर आया तो पता चला काहे बड्डे की बाढ़ आ जाती है इन तरीखों पर।
उन दिनों लकड़ी की ''तख्ती'' पर 'छूही' से लिखने का जमाना था। इमला, गिनती और पहाड़ा दिनचर्या प्राइमरी स्कूल की अभिन्न दिनचर्या में शामिल थी। किसकी तख्ती कितनी चिकनी, दोपहर में एक घण्टे में इंट्रोल(उस वक्त का pronunciation) में घर आकर दोपहर का भोजन करके वापस हो जाना, भले ही 3 किलोमीटर दूर घर हो, स्टेमिना इतना होता था कि वो आदतन था सारे बच्चों का। या यों कह लोजिये इंट्रोल के बाद, स्कूल में केवल और केवल गुरु जी बचते थे बस,बाकी बच्चे अपना बस्ता उनके भरोसे छोड़कर गायब हो जाये थे।
कुछ चोरकट टाइप के बच्चे भी होते थे जो पहले आकर दूसरे के बस्ते से चोरी कर लेते थे। चुराने के लिए भी होता क्या था 'सेंठे कि कलम बदल ली, छूही ले ली, पत्ती(ब्लेड) निकाल ली जिससे कलम बनाई जाती थी। ब्लेड भी बड़ी मुश्किल से मिलती थी क्योंकि उस्तरे का जमाना था तब और दाढ़ी केवल एक दो लोग बनाते थे अपने हाथ से।बस इतनी ही चोरी बमचक मचाने के लिए काफी था।
कुछ चोरकट टाइप के बच्चे भी होते थे जो पहले आकर दूसरे के बस्ते से चोरी कर लेते थे। चुराने के लिए भी होता क्या था 'सेंठे कि कलम बदल ली, छूही ले ली, पत्ती(ब्लेड) निकाल ली जिससे कलम बनाई जाती थी। ब्लेड भी बड़ी मुश्किल से मिलती थी क्योंकि उस्तरे का जमाना था तब और दाढ़ी केवल एक दो लोग बनाते थे अपने हाथ से।बस इतनी ही चोरी बमचक मचाने के लिए काफी था।
जो बच्चे घर से पहले आ जाते थे वो खेलने लग जाया करते थे। लड़कियों का खेल अलग था लड़खों का अलग। जो चोर टाइप ले लडके होते थे वो गुरु जी से बचकर "गोली" और "पैसा" खेलते थे। जो ठीक ठाक होते थे उनका उचित खेल 'गेंद गिट्टी'' कबड्डी,etc। और लड़कियाँ खो-खो, सिकड़ी, गोट्टा etc। पर खो-खो ऐसा खेल था जो लड़के लड़कियां दोनो खेलते थे लेकिन उनका ग्रुप अलग ही होता था.. लड़के अलग, लड़कियां अलग।
प्राइमरी स्कूल में गुरु जी बच्चों को बच्चा नही समझते थे ऐसा पीटते थे जैसे हैरान गदहा। पहले बच्चे स्कूल में इतना मार खाते थे कि घर तक रोते हुए जाते थे और घर पहुंचने के बाद बाप महतारी लतियाते थे कि बेटा तोहरै गलती रहा होगा।
हमको याद है कुछ बैल टाइप के लड़कों को गुरु जी स्कूल लान के लिये पाँच छः लड़के भेज दिया करते थे और उन लड़कों का ब्रह्म वाक्य ''गुरु जी भेजिन है इनका लावै खातिर" तो बाप महतारी छोड़ो पूरा गाँव दूर हट जाता था फिर उस बच्चे के स्कूल पहुंचने के बाद मजलिस लगती थी।
"काहे नही आवत रहेव''
"गुरु जी मूड़ पिरात रहा" इतने में एक लड़का बेशरम (बेहया) का डंडा तोड़कर लाता था जो उसका जन्मसिद्ध अधिकार था अर्थात मास्टर साहब को कभी जरूरत पड़े तो उसकी तरफ देखते ही थे और वो उठ पड़ता था।
फिर घप-घप-घप-घप लतनौ मुकनौ सब।
हमको याद है कुछ बैल टाइप के लड़कों को गुरु जी स्कूल लान के लिये पाँच छः लड़के भेज दिया करते थे और उन लड़कों का ब्रह्म वाक्य ''गुरु जी भेजिन है इनका लावै खातिर" तो बाप महतारी छोड़ो पूरा गाँव दूर हट जाता था फिर उस बच्चे के स्कूल पहुंचने के बाद मजलिस लगती थी।
"काहे नही आवत रहेव''
"गुरु जी मूड़ पिरात रहा" इतने में एक लड़का बेशरम (बेहया) का डंडा तोड़कर लाता था जो उसका जन्मसिद्ध अधिकार था अर्थात मास्टर साहब को कभी जरूरत पड़े तो उसकी तरफ देखते ही थे और वो उठ पड़ता था।
फिर घप-घप-घप-घप लतनौ मुकनौ सब।
जिस लडके को पहाड़ा मुँहजबानी आता था वो कितना भी कमजोर क्यों न हो उससे कोई नही भिड़ता था। काहे से कि वही पहाड़ा सुनता था और जो न सुना पाए उसे थप्पड़ मारने का अधिकार गुरु जी ने दे रखा होता था।
कक्षा दो तक तो तख्ती पर ही लिखना होता था उसके बाद कॉपी मिलती थी।
बोरिया लेकर जाते थे उसी पर बैठते थे और बारिश में वही ओढ़ लेते थे।
कक्षा दो तक तो तख्ती पर ही लिखना होता था उसके बाद कॉपी मिलती थी।
बोरिया लेकर जाते थे उसी पर बैठते थे और बारिश में वही ओढ़ लेते थे।
जमाना बदल गया बच्चों के बस्तों ले आकार बदल गए, उनको सिलेबस पढाया जाने लगा। उन पर जिम्मेदारी लाद दी गयी फर्स्ट आने की जद्दोजहद हो गयी। उनको सपने दे दिए गए इंजीनयर और डॉक्टर बनने के, उनको खुली आँखों से देखने पड़ रहे हैं। वो दस साल की उम्र में दर्शनिक बनकर डायलाग बोल रहे हैं ''मैं उड़ना चाहता हूँ दौड़ना चाहता हूँ गिरना भी चाहता हूँ बस रुकना नही चाहता"।
यह सपने हमारे वक्त में न थे हमारे वक्त में सपने केवल दादी-नानी के किस्सों कहानियों में होते थे।
यह सपने हमारे वक्त में न थे हमारे वक्त में सपने केवल दादी-नानी के किस्सों कहानियों में होते थे।
"जो बीत गया है वो, अब दौर न आएगा।" 🙂
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