समुद्र मंथन, सती दाह व पार्वती से पुनर्विवाह के पश्चात कैलाश पर एक देव समागम में महादेव ने विष्णु से अनुरोध किया कि उन्होंने सारे अवतार देखे परंतु मोहिनी अवतार देखने से चूक गये अतः वह उन्हें मोहिनी रूप में एक बार देखना चाहते हैं। पार्वती भी उत्सुक थीं कि उनके सौंदर्य से भी अधिक सौन्दर्यवान कौन हो सकता है, अतः शिव के इस अनुरोध में उनकी भी मूक सहमति थी।
विष्णु ने ना नुकुर की लेकिन महादेव ने हठ पकड़ लिया तो विष्णु अंतर्ध्यान हो गये। शिव निराश हो गए और पार्वती की ओर देखने लगे।
अचानक कुछ ही क्षणों में उस स्थान पर सुगंधित हवायें बहने लगीं, पुष्प खिल उठे और कोयल कूक उठी। अचानक पुष्प कुंजो से एक कोमल खिलखिलाहट सुनाई देने लगी। उस खिलखिलाहट में ऐसी मादकता थी कि सभी देवगणों की दृष्टि उस ओर उठ गई। किसी कन्या की झीनी छवि उस कुंज में ऊब डूब हो रही थी।
महादेव का भी ध्यान उधर खिंच गया और वे उत्सुक हो उठे।
सहसा वह कन्या कुंज से निकलकर सामने आ गई और महादेव स्तब्ध हो गये। न तो संसार का समस्त सौंदर्य मिलाकर भी उसके सौंदर्य की बराबरी कर सकता था और न संसार भर की मदिरायें वह मादकता उत्पन्न करने में समर्थ थी जो उसकी देहयष्टि के कोणों व संचालन से उत्पन्न हो रही थी।
महादेव संसार से अभान निर्निमेष दृष्टि से देखे जा रहे थे
अचानक हवा का एक झोंका आया और उस कन्या की एक जंघा से वस्त्र उठ गया।
काम का बांध टूट गया और शिव संसार के सामने ही उसे पाने दौड़ पड़े। वह कन्या भी शिव को कामग्रस्त देखकर भाग निकली।
आगे वह सुंदरी और पीछे महादेव।
काम को दग्ध करने वाले कामारि आज स्वयं कामदग्ध हो रहे थे। अचानक महादेव के हाथ में उसका सुकोमल हाथ पकड़ में आ गया और वे स्खलित हो गये।
समस्त वातावरण तिरोहित हो गया और शिव लज्जित खड़े रह गये।
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जब भी इस प्रसंग को पढ़ता हूँ तो एक सवाल हमेशा उठता है कि जब मोहिनी को देखकर कामारि रुद्र की हालत यह हो गई तो बाकी देवगणों की हालत क्या हुई होगी? क्या वे कामासक्त नहीं हुये होंगे??
अब दो ही बातें संभव हैं-
अब या तो देवगण रुद्र से अधिक संयमी थे
या
देवगणों में इतनी #तथा नहीं बची थी कि वे मोहिनी का हाथ पकड़ सकें।
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मोरल ऑफ द स्टोरी: ना आप राम जैसे पितृभक्त व समाजोन्मुख हैं और ना ही रुद्र से सामर्थ्यवान अतः भगवान बनने की कोशिश मत कीजिये और इंसान ही बने रहिये। आप कोई दूध के धुले नहीं हो और ना आप महादेव शिव से अधिक संयमी हो । बस आपको मौका नहीं मिला और ना आपके चर्बीदार थोबड़े और फूली तोंद पर कोई फिदा होने वाली है। बटुकनाथ, शशि थरूर और अजितेश बनने की ख्वाहिश सबकी है पर औकात व तथा नहीं।
इसीलिए प्रेम व काम संबंधों में उम्र की नैतिकता का तर्क मत दीजिये क्योंकि ये तर्क वे लोग देते हैं जिनके चेहरे शरीर व मन तीनों एक्सपायर हो चुके हैं। ।