सुकरात के बारे में एक काहनी प्रचलित है। उन्हें जब विष का प्याला पीने के लिए दिया गया तो उनके पास आस्तिक और नास्तिक दोनों ही
प्रकार के मित्र
मौजूद थे।
पहले उनके नास्तिक मित्रों ने पूछा, ‘‘क्या आपको मौत का भय नहीं है ?’’
सुकरात ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘इस समय मैं आप लोगों के ही मत और विश्वास के अनुसार निर्भय हूँ। आप लोग कहते हैं कि आत्मा का अस्तित्व ही नहीं है, तो फिर चिंता कैसी ? आत्मा है ही नहीं। शरीर नश्वर है। इसे एक न एक दिन नष्ट होना ही है, तो फिर चिंता का प्रश्न ही नहीं उठता। विषपान के बाद मैं मर जाऊंगा, तो कहानी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।’’
यह सुनकर फिर सुकरात के आस्तिक मित्रों ने भी वही सवाल किया। सुकरात ने उन्हें कहा, ‘‘आप लोगों के अनुसार आत्मा अमर है। विषपान के बाद यदि मैं मर गया, तो भी आत्मा तो मरेगी नहीं। फिर डर किस बात का ?
इस प्रकार सुकरात ने अपने अंतिम समय में भी अपने आस्तिक और नास्तिक दोनों प्रकार के मित्रों को संतुष्ट किया।
वास्तव में आस्तिकता और नास्तिकता का उतना महत्त्व नहीं है, जितना कि जीवन में विचारों की शुद्धता एवं पवित्रता से ऊर्जा ग्रहण करने का है।
पहले उनके नास्तिक मित्रों ने पूछा, ‘‘क्या आपको मौत का भय नहीं है ?’’
सुकरात ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘इस समय मैं आप लोगों के ही मत और विश्वास के अनुसार निर्भय हूँ। आप लोग कहते हैं कि आत्मा का अस्तित्व ही नहीं है, तो फिर चिंता कैसी ? आत्मा है ही नहीं। शरीर नश्वर है। इसे एक न एक दिन नष्ट होना ही है, तो फिर चिंता का प्रश्न ही नहीं उठता। विषपान के बाद मैं मर जाऊंगा, तो कहानी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।’’
यह सुनकर फिर सुकरात के आस्तिक मित्रों ने भी वही सवाल किया। सुकरात ने उन्हें कहा, ‘‘आप लोगों के अनुसार आत्मा अमर है। विषपान के बाद यदि मैं मर गया, तो भी आत्मा तो मरेगी नहीं। फिर डर किस बात का ?
इस प्रकार सुकरात ने अपने अंतिम समय में भी अपने आस्तिक और नास्तिक दोनों प्रकार के मित्रों को संतुष्ट किया।
वास्तव में आस्तिकता और नास्तिकता का उतना महत्त्व नहीं है, जितना कि जीवन में विचारों की शुद्धता एवं पवित्रता से ऊर्जा ग्रहण करने का है।