कलकत्ता के रेलवे स्टेशन पर एक नवयुवक गाड़ी से उतरते ही
‘कुली-कुली’ चिल्लाने लगा। हालाँकि उसके पास सामान भी कम था, जिसे वह आसानी से ढो सकता था। एक सज्जन, जो सादी वेशभूषा में थे, उसके पास आए और बोले,
‘‘नौजवान, तुम्हें कहाँ जाना है ?’’ वह नवयुवक किसी शिक्षा संस्थान में पढ़ने के लिए आया था। उसने अपना नाम बताया। वे सज्जन उसे सामान के साथ उस पास के स्कूल में ले
गए,
जहाँ उसे जाना था। जब वे सज्जन सामान रखकर जाने लगे तो उस युवक ने उन्हें इनाम देना चाहा।
उन सज्जन व्यक्ति ने इनाम लेने से इनकार कर दिया फिर बोले, ‘‘आप भविष्य में अपना काम खुद कर लेंगे, बस, यही मेरा इनाम है। इतना कहकर वह सज्जन चले गए।
अगले रोज वह विद्यार्थी विद्यालय पहुंचा तो उसने देखा कि सज्जन पुरुष प्रधानाचार्य के उच्चासन पर विराजमान थे। वह नवयुवक विद्यार्थी हतप्रभ रह गया। उसके तो पसीने छूटने लगे। प्रार्थना के बाद जब सारे विद्यार्थी अपनी-अपनी कक्षाओं में चले गए तो उसने प्रधानाचार्य से माफी माँगी।
वह महान सज्जन थे-ईश्वरचंद्र विद्यासागर, जिन्होंने सामान ढोकर उस नवयुवक को उसकी कर्त्तव्यपराणयता का बोध कराया।
उन सज्जन व्यक्ति ने इनाम लेने से इनकार कर दिया फिर बोले, ‘‘आप भविष्य में अपना काम खुद कर लेंगे, बस, यही मेरा इनाम है। इतना कहकर वह सज्जन चले गए।
अगले रोज वह विद्यार्थी विद्यालय पहुंचा तो उसने देखा कि सज्जन पुरुष प्रधानाचार्य के उच्चासन पर विराजमान थे। वह नवयुवक विद्यार्थी हतप्रभ रह गया। उसके तो पसीने छूटने लगे। प्रार्थना के बाद जब सारे विद्यार्थी अपनी-अपनी कक्षाओं में चले गए तो उसने प्रधानाचार्य से माफी माँगी।
वह महान सज्जन थे-ईश्वरचंद्र विद्यासागर, जिन्होंने सामान ढोकर उस नवयुवक को उसकी कर्त्तव्यपराणयता का बोध कराया।