एक राजकर्मचारी ने बेटी के विवाह में अपने मालिक के रुपयों में से कुछ रुपए खर्च कर डाले। पता चलने पर मालिक के बेटे ने उस
कर्मचारी को पुलिस के हवाले कर देने
का विचार किया,
लेकिन पिता ने रोक दिया। उसने कहा, ‘‘इसे सजा मैं दूँगा।’’
मालिक ने कर्मचारी से कहा, ‘‘तुम्हें रुपयों की जरूरत थी तो मुझसे कहते !’
कर्मचारी रोने लगा। मालिक ने कहा, ‘‘आज से मैं तुम्हारी तनख्वाह दोगुनी किए देता हूँ।’’
पुत्र ने पिता से पूछा, ‘‘आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ?’’
पिता ने कहा, ‘‘बेटे, यदि इसे हम पुलिस के हवाले कर देते तो इसका घर तबाह हो जाता। दूसरे, अपराध हमारा भी है कि हमने इसके क्रियाकलापों पर ध्यान नहीं दिया। तीसरे, क्षमा से बढ़कर और कोई दंड नहीं है, इसलिए इसके साथ यही व्यवहार उचित है।’’
मालिक ने कर्मचारी से कहा, ‘‘तुम्हें रुपयों की जरूरत थी तो मुझसे कहते !’
कर्मचारी रोने लगा। मालिक ने कहा, ‘‘आज से मैं तुम्हारी तनख्वाह दोगुनी किए देता हूँ।’’
पुत्र ने पिता से पूछा, ‘‘आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ?’’
पिता ने कहा, ‘‘बेटे, यदि इसे हम पुलिस के हवाले कर देते तो इसका घर तबाह हो जाता। दूसरे, अपराध हमारा भी है कि हमने इसके क्रियाकलापों पर ध्यान नहीं दिया। तीसरे, क्षमा से बढ़कर और कोई दंड नहीं है, इसलिए इसके साथ यही व्यवहार उचित है।’’