इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे
चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत
कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते
इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत ।। !! दुर्भावना
रहित सत्य का प्रचार :लेख के तथ्य संदर्भित पुस्तकों और
साइटों पर आधारित हैं !!
!! भारत के
अर्थब्यवस्था और FDI
का महत्व !!
Foreign direct investment (FDI) is
direct investment into production in a country by a company located in another
country
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था अच्छी तभी हो सकती है जब
वो अपनी मुद्रा दुसरे देशों में न जाने दे और दुसरे देशो की मुद्रा अपने देश में
लाये. किसी भी देश में तीन प्रमुख शेत्र हैं रोजगार के लिए वो
हैं कृषि और उसपर निर्भर उद्योग, व्यापार, और सेवा ( service
) उद्योग. अगर किसी देश में सिर्फ कृषि और उसपर निर्भर उद्योग हैं तब भी वो भूखा नहीं
रहेगा. और क्रषि ही एक मात्र मुद्रा पैदा करती है बाकी सारे उद्योग सिर्फ घुमाते हैं.
मतलब जिस देश के पास कृषि है वो सबसे समर्ध देश है. चीन के
महापुरुष माओ ने इसलिए ही भारत के बारे में कहा की जो भी अछे काम करता है उसका अगला जन्म
भारत में होता है. कार्ल मार्क्स ने भी यही कहा की भारत के लोग
सीधे-अहिंसक होते हैं क्यूंकि वो उपजाओ कृषि जमीन वाले देश में हैं, मतलब उन्हें खाने के लिए किसी को लूटना या मारना नहीं पड़ता बल्कि उल्टा
ही वो दूसरों को भूखा नहीं रहने देते.
वहीँ दूसरी और यूरोप,
जिसके पास ना खेती न और जमीनी संसाधन हैं वो
कैसे इतना समर्ध है ?
तो इसके बारे में स्वामी विवेकानंद उनको लताड़
कर कहते हैं यूरोप वालों को जहाँ भी मौका मिलता है वहां के
मूल निवासियों का नाश करके स्वयं मौज से रहते हैं. यदि ये यूरोप वासी अपने देश के
सिमित साधनों पर ही जीवित रहते तो उनका दरिद्र जीवन उनकी
सभ्यता की कसोटी पर ही घ्रणित आवारों का जीवन कहलाता. इसलिए ही वो दुनिया भर में लूट -पात
मचाते, हत्या और धर्म परिवर्तन करते फिरते हैं. यूरोप वालों क्या
तुम बता सकते हो की तुमने किस देश की दशा को सुधार है ???
जहाँ भी तुमने दुर्बल जाती को पाया उसका समूल नाश कर दिया उनकी ज़मीन उनके संसाधन
पर तुम आकर बस गए और वे जातीय तुमने लुप्त कर दी. तुम्हारे अमेरिका का क्या इतिहास
है ????? तुम्हारे
आस्ट्रेलिया , न्यू जीलैंड,
प्रशांत महासागर के द्वीप समूह और अफ्रीका का क्या इतिहास है????? वहां की मूल
जातीय अब कहाँ है ????? तुमने इन देशों की मूल जातियों का संहार करके उनका जमीन उनके
संसाधन सब पर कब्ज़ा कर के मजे उदा रहे हो वहां की तकनिकी को अपना बना
लिया . तुम मेरी द्रष्टि में सिर्फ जंगली हिंसक जानवर मात्र हो.
जहाँ तुम्हारा सामर्थ्य नहीं था बस वहीँ अन्य
जातियां जीवत हैं. यूरोप का उद्देश्य है सबका नाश करके स्वयं को जीवित रखना.
यूरोप अगर जिंदा रहेगा दो सिर्फ और सिर्फ परजीवी बन कर
दुसरे देशों को चूसते हुए. ये पहले व्यापार के बहाने से भारत आये फिर उन्होंने
वोही लूट-शोषण शुरू कर दिया जब शोषण और प्रत्यक्ष लूट पर भारत
का जनमानस भड़क गया तो चले गए पर छोड़ गए अपने काले अंग्रेज उन लूटेरों का गुणगान करने
को. प्रयक्ष लूट के बाद फिर वोही व्यापार ले के फिर भारत आये
और काले अंग्रेज फिर से तैयार हैं उनके स्वागत को,
रिश्वत खाने को और देश को उन्ही विदेशियों से लूट वाने को.
एक समय था जब भारत अनाज के लिए निभर था अमेरिका पर. भारत के
लाल लाल बहादुर शाष्त्री ने हुंकार भरी तो किसानो ने देश
को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया. अमेरिका और यूरोप दोनों के मिलकर तब
से ले के अब तक न जाने कितने षड़यंत्र रचे भारतीय किस्सनो की कमर तोड़ने को . कभी
किसानों पर सब्सिडी हटाने के लिए दबाव डाला गया तो कभी बीज
में मिलकर खरपतवार भेजे गए. कभी हमारे दलाल राजनेताओं ने अनाज सड़ने दिया और
अमेरिका-आस्ट्रेलिया से निम्न स्तर का अनाज ख़रीदा खरपतवारों के बीज के साथ वो भी
बहुत ज्यादा दामों में.
कांग्रेस घास जो अमेरिका से आई थी दलाली के गहुँ के साथ
आज भारत की 6 % जमीन पर उस खरपतवार का कब्ज़ा है यानी नेपाल और भूटान से
ज्यादा भू-भाग पर . सीधे-सीधे भारत का कृषि उत्पादन 8
% कम हो गया उसके लिए या तो भारत को अनाज का आयत करना पड़ेगा या निर्यात नहीं कर सकेगा. मतलब या
तो वो अमेरिका-आस्ट्रेलिया का बाज़ार बनेगा नहीं तो उनके दुसरे देशों के बाज़ार को कोई
नुक्सान नहीं पहुंचाएगा.
हमारी तकनिकी प्राचीन में सर्वश्रेष्ठ थी जो की आज भी
कम नहीं है सर्वश्रेष्ठ हो सकती है अगर यूरोप की पिछलगू -मानसिक गुलाम अपनी बिमारी से
बहार आयें. आज भी हम तकनिकी शेत्र में विश्व पटल पर हैं हमने
ही अपने से बाकी देशों से अच्छा सुपर कंप्यूटर बनाया और दूसरों को भी दिया, हमने ही इसरो के माध्यम से सबसे सस्ते दुनिया के देशों के उपग्रह
अन्तरिक्ष कक्षा में कुशल पूर्वक स्थापित किये , हम परमाणु उर्जा समर्थ बने हमने ही विश्व का
सबसे सस्ता कंप्यूटर आकाश बनाया,
हमने ही सबसे सस्ती कर नेनो दे कर दुनिया को
अचंभित कर दिया. सबसे सस्ती चिकित्सा , हार्ट सर्जरी जैसे जटिल शल्य चिकित्सा भी सबसे सस्ती हम देते हैं. भारतियों ने नासा
हो या अमेरिका-यूरोप के इंजीनियरिंग और मेडिकल छेत्र में 40
-50 % भारतीय हैं.
भारतीय कम्पनियाँ विश्व पटल पर अपनी पकड़ मजबूत करती जा
रही हैं , तो जाहिर सी बात है न तो भारत में न तो तकनिकी ज्ञान की कमी
है और न ही प्रबंधन के गुण की.
कमाल की बात है यूरोप -अमेरिका की आर्थिक लूट के
बावजूद वहां की अर्थव्यवस्था की बुरी हालत है वहां के लोग हताश हैं सडको पर नारे बाजी कर
रहें हैं. आज अमेरिका-यूरोप की तकनीक को कोई एशिया के आगे पूछ
नहीं रहा है. तो वहां के तकनिकी , अर्थशास्त्र और प्रबंधक विशेश्यक्ष और कथित सर्वश्रेष्ठ
शिक्षण संस्थान
बेकार ही साबित हुए. पर भारत में उन पिछलग्गू -गुलाम मानसिकता के शिकार लोगों का इलाज होना चाहिए जो अभी भी ये
कहते नहीं थक रहे की वहां के संसथान, वहां की कम्पनियां वहां का रहन-सहन बहुत अच्छे हैं??.
भारत की जनता की भाग्य-विधाता इन विदेशियों और इनकी
कंपनियों को क्यूँ बनाया जा रहा है.जब हम अपने भाग्य विधाता खुद बन सकते हैं साथ-२
विश्व के भी. यूरोप-अमेरिका तो सिर्फ लूट ही सकते हैं अच्छी
जिंदगी नहीं दे सकते.
विदेशी कंपनियां किसी भी देश में जाती है तो उन
कम्पनियों की भी कुछ शर्ते होती हैं और उन देशों की भी जहाँ वो जा रही हैं. यूरोप-अमेरिका
की कम्पनियों को दुसरे देशों में लाने का दबाव उनके राजनितिक लोग
बनाते हैं. हर देश में विदेशी कंपनियों की शर्त अलग-लग होती हैं और हर देश की उन
कम्पनियों के लिए शर्ते भी अलग-अलग होती हैं. मतलब जो चीन में हैं
या जापान में हैं बिलकुल भी जरूरी नहीं भारत में हों.
वालमार्ट जैसी कम्पनियां अगर वहां है तो क्या भारत में
उनके लिए सामान वातावरण है?? जाहिर है हमारी शर्ते और वालमार्ट की शर्ते चीन से अलग
होंगी. कुछ लोग चाइना में वालमार्ट जैसी कम्नियों के होने पर
मांग कर रहे हैं भारत में क्यूँ नहीं हो सकती??
तो पहले इन बिन्दुओं पर सोचिये :
१. क्या चीन और भारत में सामान रूप से
शर्ते-कानून हैं वालमार्ट के लिए ??
२. चीन के सस्ते सामान से दुनिया भर के बाज़ार भरे पड़ें हैं , दुनिया भर की कंपनियां अपने सामान भी चाइना से सस्ते में बनवा
रही हैं अपने देश में प्रोडक्शन बंद करके. तो क्या वालमार्ट जैसे कम्पनी अपना
सामान भारत के लोगों से खरीद कर बेचेगा या चाइना से??
३. 30 % सामान लघु -उद्योगों से खरदने की बात सरकार कर
रही है पर ये भी साफ़ नहीं वो भारत के होंगे या किसी और देश के?? लघु-उद्योग
तो हर देश में हैं.
४. अगर वो चाइना से सस्ता सामान खरीदता है तो
फायदा चाइना को होगा ये हमारे उद्योगों को??
हमारे मानसिक गुलाम या बीके हुए निति नियंता को
वालमार्ट के आने से बहुत अछे प्रबंधन की उम्मीद हैं. मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूँ की
भारतीय कम्पनियां प्रबंधन के मामले में किसी से कम हैं??
अमेरिका जहाँ वालमार्ट का एक स्टोर खुलता है तो उसकी आय 85 % स्थानीय व्यापारियों की आय को हड़प कर होती है. खेती और खेती से
जुड़े उद्योगों के बाद व्यापार ही है जो लोगों को रोजगार देता है. आज के समय इस मंदी के
दौर में जब नौकरी के लिए इतनी मारा-मारी है तो एक किराना दूकान, एक ठेला,
एक चाय की दूकान पर क्यूँ हमला करवाने पर तुले हैं??
किसान और उपभोक्ताओं के बीच देसी व्यापारी हैं
कुछ लोग उन्हें दलाल बोल रहे हैं. तो क्या वालमार्ट के आने से विदेशी दलाल नहीं आएंगे ? और तब भी किसानो और उपभोक्ताओं को कुछ फायदा नहीं होगा और जो
नुक्सान देशी दलालों को होगा उतना फायदा विदेशी दलालों को और उनके देश को होगा .
सत्य यह है हमारे मानसिक बीमार-या पिछलग्गू या
विदेशिओं के दलाल नेताओं ने न तो प्रयोगशाला बन्ने दी और कोई अच्चा काम करके भी दे तो उसको
मानते नहीं उन्हें भारतीयों का नया काम तब तक अच्छा नहीं
लगता जब तक विदेशी पेटेंट नहीं मिलता. , और DRDO जैसी बनायी भी हैं तो अपंग बना के छोड़ा हुआ है.
हर तकनीक उनको विदेश से चाहिए ताकि दलाली खा सके.
इन लोगों ने भारत के लोगों पर मनोवाज्ञानिक दबाव बना के राखह हुआ है की विदेशी लोग
विदेशी सामान विदेशी कंपनिया अच्छी होती हैं.
जबकि अच्छी गुणवत्ता के सामान देसी कंपनिया बना सकती
हैं अगर सरकार शख्त कानून शर्तें आर गुणवत्ता के मानक निर्धारित करें तो. पिछले ६०
सालों से ये राजनेता विदेशी अच्छा है , हम वहां से तकनीक ला रहें हैं हम वहां के संस्थान ला रहे हैं इनका झुनझुना बजा कर देश की
जनता को बेवकूफ बना कर दलाली खा कर देश को लूट वाने पर लगे हैं.
अगर देशी दलाल इतना चूस रहे हैं या बहुत ज्यादा दलाली खा रहें
हैं तो सरकार क्या हिज़ड़ों की तरह गम-ख़ुशी में बस ताली
बजाने भर की हैं ?? जब किसान-मजदूरों का न्यूनतम और अधिकतम मूल्य निर्धारित क्या
जा सकता है तो उपभोक्ता के हाथ में आने वाले सामान का न्यूनतम
और अधिकतम मूल्य क्यूँ नहीं निर्धारित हो सकता ??
सरकार ने MRP लिखने का तो दिया हुआ है पर क्या है MRP लिखने का कानून??
कम्पनिया MRP
मनमाने डंग से लिखती हैं जिसकी जो मर्ज़ी वो MRP लिखता है
.तो क्या MRP
से प्रोडक्ट कास्ट तय होनी चाहिए या कंपनी कास्ट
पर? अगर कंपनी अपनी लागत लिखे MRP
की जगह तो भी बीच के दलाल उतना ही खा सकेंगे जिसके वो हक़दार हैं.
MRP मनमर्जी का लिखा है जिसकी वजह से उपभोक्ता को
बेवकूफ बनाया जाता है उन्हें लूटा जाता है जैसे एक की MRP
के दाम में पांच फ्री जैसे प्रलोभन दे के एक से ज्यादा प्रोडक्ट खरीदने के लिए मजबूर करते
हैं. मनमर्जी की MRP में 1 रुपए या 10
रुपए कम करके कहते हैं हम औरो से सस्ता बेच रहे
हैं ये ही हाल रिटेल की दुकानों का है.
तो उपभोक्ता का कुछ भी फायदा नहीं है पर उसे लगता है की फायदा
हो गया कभी उपभोक्ता ये भी सोचे मनमर्जी की MRP से किसको फायदा हुआ है और हकीक़त में कौन बेवकूफ बना है. बस फील गुड के अलावा.
दलाल नेता और लोग साफ़ झूट बोल रहे हैं की इनके आने
से किसानों को फायदा होगा , किसान आत्महत्या नहीं करेंगे. जहाँ किसान आत्महत्या करने को
मजबूर है वहां की मुख्या वजह है बारिश पर निर्भरता . जब भी बारिश नहीं
होती तो फसल के बर्बाद होने पर किसान आर्थिक बोझ और
साहूकारों के अत्याचार के चलते आत्महत्या करने पर मजबूर हैं. क्या वालमार्ट जैसे कम्पनियां
वहां बारिश कराएंगी समय से??
या वालमार्ट इतनी शक्तिशाली है जो सूखती नदियों
में पानी भर देंगी या भू-जल स्तर बड़ा देंगी??? जब सरकार ही वहां पानी का हल निकलने को बेबस है तो वालमार्ट सरकार से भी बड़ी है?? जो भी किसान इन रिटेल के चक्कर में फंसे हैं उनकी जमीन का दोहन यूरिया
जैसे उर्वरक, कीटनाशक ड़ाल कर किया जिसके चलते जमीन बंजर होने लगी और उन
साग-सब्जियों को खाने वाले में बिमारी बढ़ने लगी अगर मैं गलत हूँ तो क्यूँ जैविक
खेती के लिए जोर दिया जाने लगा है क्यूँ बिना यूरिया और कीटनाशक
की खेती के लिए जोर देना शुरू हुआ है आप भी जैविक खेती से होने वाले फायदे देखें हाँ
पर इस प्रक्रिया में उत्पादन यूरिया की खेती से कम
होता है. किसान की जमीन बंजर करके ये भाग जायेंगे तब किसान क्या करेंगे?
दूसरी बात अभी किसान जिसे चाहें उसे अपना सामान बेच सकते हैं. इन कम्पनियों के आने से इनका एकाधिकार नहीं होगा क्यूंकि अमेरिका का अनुभव
तो ये ही कहता है . और जब इनका एकाधिकार होगा तब
ये मनमाने ढंग से किसानों से खरीदेंगे और मनमाने डंग से उपभोक्ताओं को
भी बेचंगे. न इनका कोई प्रतिस्पर्धा में रहेगा न कोई इनको रोकने वाला . हमारे प्रधामंत्री बहुत बड़े अर्थशाष्त्री कहे जाते हैं पर उनको अर्थशाश्त्र का सामान्य सा नियम भी नहीं
पता की एकाधिकार से चीज़ें कभी सस्ती नहीं होती उलटे बदती हैं. वालमार्ट
भारत के व्यापारियों से तो बहुत बड़ी है अगर वो मार्केट से साड़ी
प्याज खरीद ले तो मनमाने डंग से मनमाने दामों पर बेचेगी . फैसला हम सब को
मिलकर करना है क्यूंकि भुक्तभोगी हम बनेंगे