!!•!! विशुद्ध
चक्र !!•!!
विशुद्धास्य चक्र का स्थान-कण्ठ,
दल-सोलह,
वर्ण-धूम्र,
लोक-जनः,
दलों के अक्षर-अ से लेकर अः तक सोलह अक्षर,
तत्त्व-आकाश,
बीज-हँ,
वाहन-हाथी,
गुण-शब्द,
देव-पंचमुखी सदाशिव,
देवशक्ति-शाकिनी,
यंत्र-शून्य (गोलाकार),
ज्ञानेन्द्रिय-कर्ण,
कर्मेन्द्रिय-वाक्,
ध्यान का फल-
चित्त शान्ति, त्रिकाल दर्शित्व, दीर्घ जीवन, तेजस्विता, सर्वहित परायणता।
इसमें सोलह कलाएँ, सोलह विभूतियाँ विद्यमान हैं।
विशुद्धास्य चक्र का स्थान-कण्ठ,
दल-सोलह,
वर्ण-धूम्र,
लोक-जनः,
दलों के अक्षर-अ से लेकर अः तक सोलह अक्षर,
तत्त्व-आकाश,
बीज-हँ,
वाहन-हाथी,
गुण-शब्द,
देव-पंचमुखी सदाशिव,
देवशक्ति-शाकिनी,
यंत्र-शून्य (गोलाकार),
ज्ञानेन्द्रिय-कर्ण,
कर्मेन्द्रिय-वाक्,
ध्यान का फल-
चित्त शान्ति, त्रिकाल दर्शित्व, दीर्घ जीवन, तेजस्विता, सर्वहित परायणता।
इसमें सोलह कलाएँ, सोलह विभूतियाँ विद्यमान हैं।
इसके जागरण से ये सभी कलाएँ एवं विभूतियाँ
विकसित हो जाती हैं।