!!•!! हुताशनश्चन्द्रनपङ्कशीतलः
!!•!!
राजा
भोज एक प्रसिद्ध राजा हुए । राजा तो थे ही स्वयं उच्च कोटि के कवि, लेखक, दार्शनिक भी थे । साहित्य पर इनके अनेक ग्रन्थ
जगप्रसिद्ध है ।
उनकी
योगसूत्रो पर भोजवृति भी प्रसिद्ध है । उनके दरबार मेँ बड़े - बड़े कवि थे, साधारण भी कोई श्लोक बनाकर राजा भोज के पास लाता था तो भोज उसका बड़ा
सम्मान करते थे ।
दण्डी
, बाणभट्ट आदि उनके सभापण्डित माने जाते थे ।
कालिदास भी उनके अत्यन्त प्रिय कवि थे । एक बार उन्होँने एक समस्या रखी पूर्ति के
लिए ।
" हुताशनश्चन्दनपङ्कशीतलः
"
बड़े
- बड़े कवि एक दूसरे का मुँह देखने लगे ।
【हुताशन - अग्नि चन्दनपंक के
समान( घिसे हुए चन्दन) के समान शीतल हैँ।】
राजा
का दिमाग पगला तो नही गया ?
कोई
बोल नहीँ रहा था । भोज राजा एक - एक कवि को कह रहे थे - समस्या पूर्ति करो ।
कालिदास जी मुस्कुरा रहे थे । भोज ने कहा - कालिदास जी, अब आप ही समस्या पूर्ति करेँ । कालिदास जी ने तुरंत कहा -
【" सुतं पतन्तं
प्रसमीक्ष्य पावके न बोधयामास पतिँ पतिव्रताः ।
तदाभवत्तत्पतिभक्तिगौरवाहुताशनश्चन्दनपङ्कशीतलः
।।""】
राजा
ने श्लोक के एक - एक अक्षर के लिए एक - एक लाख रुपये दिये ।
【अक्षरलक्ष ददौ।】
कालिदास
कहाँ कम थे ? लाखोँ रुपया गरीबोँ को बाँट दिया ।
कथा
इस प्रकार से है राजा भोज समय - समय पर भेष बदल कर स्वयं गुप्तचर बनकर प्रजा की
बात को समझते थे ।
पहले
समय राजा लोगोँ का ऐसा ही नियम था, प्रजा के
सुख - दुख को वे साक्षात् देखते थे । एक बार एक ब्राह्मणदेवता ने यज्ञ किया । गरीब
होने पर इधर - उधर से कुछ धन एकत्रित कर यज्ञ प्रारम्भ किया ।
सम्पन्न
होने पर यथायोग्य दक्षिणा देकर ब्राह्मण व देवताओँ को विदा किया । कई दिनोँ के अथक
परिश्रम से यह यज्ञ सम्पन्न हुआ था पूर्णाहुति के बाद सभी चले गये थे, केवल एक ब्राह्मणदेवता एवं ब्राह्मणपत्नी , अग्नि ,
बच्चा यज्ञमण्डप मेँ रह गये थे ।
रात
हो गई थी, कार्य पूरा होने पर ब्राह्मणदेवता को भारी थकावट
हो गई थी तो वो वही यज्ञमण्डप मेँ लेट गये, पत्नी वहीं थी
तकिया नही था इसलिए अपनी गोद मेँ ही पति का सिर ले लिया ।
ब्राह्मणदेवता
को नीँद आ गयी । छोटा बच्चा खेलता - खेलता यज्ञकुण्ड के पास चला गया यह देख के
ब्राह्मणी को घबराहट होने लगी कि बच्चा कहीँ यज्ञकुण्ड मेँ न गिर जाए ।
किन्तु
उसको अपने पति पर पूरी भक्ति थी । ब्राह्मणदेवता थे भी वैसे । ब्राह्मण के
सम्पूर्ण लक्षण उनमेँ थे ।
【" शमो दमस्तपः शौचं
क्षान्तिरार्जवमेव च । ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्मस्वभावजम् ।।】
ब्राह्मण
को शम दम संपन्न होना चाहिये । मनोनिग्रह और वाह्येन्द्रियनिग्रह ब्राह्मण के लिये
भृषण हैँ ।
संतोष
यह मानस गुण है । इन्द्रियोँ के लालच का अभाव बाह्येन्द्रियोँ के गुण हैँ । तप
करना तो ब्राह्मण का धर्म है । शुचिता नियत होनी चाहिये । शारीरिक शुचिता रखनी
चाहिये ।
बाणी
पवित्र और मन भी पवित्र हो । ब्राह्मण क्षमाशील हो । सीधापन हो , कपट न हो । वक्रमार्गी न हो । शास्त्राध्ययन जन्य ज्ञान हो । सबसे बड़ी बात
आस्तिक हो ।
यह
बाह्मणदेवता जो यज्ञमण्डप मेँ ठहरा था , सर्वगुण
सम्पन्न था । पत्नी मेँ भी अपारनिष्ठा थी । बच्चा यज्ञकुण्ड के पास है अब पति का
सिर नीचे करते है तो उनकी नींद टूट जायेगी इतने दिनोँ के बाद आज थके - थकाये सोये
हैँ ।
कैसे
जगायेँ ?
सोच
ही रही थी कि बच्चा कुण्ड मेँ गिर गया , हे राम!!
बच्चा
गिर गया तो स्वभावतः रोने लगा । ब्राह्मण की नींद टूटी । क्या हुआ ?
देखा
तो बच्चा कुण्ड मेँ गिरा हुआ रो रहा है । ब्राह्मणदेव हड़बड़ा कर यज्ञकुण्ड के पास
गये । देखा तो बच्चा का रोना बन्द हो गया था ।
क्या
मरने से? नही,
बेहोश
होने से ? नही।
बच्चे
को कुण्ड से निकाला तो उसका एक बाल भी जला नही था । बच्चा मुस्कुरा रहा था ।
ब्राह्मण
देव ने कहा - " अहो दयालु है भगवान् । तुम्हारी लीला अपरंपार है ।
राजा
भोज सारा दृश्य दूर से देख रहे थे वहीँ उन्होँने श्लोक का चतुर्थ पाद् बनाया ।
【" हुताशनश्चन्द्रनपङ्कशीतलः
"। हुतमश्नातीति हुताशनः । 】
आहुति
को खानेवाला हुताशन वह चन्दनपङ्क के समान शीतल हो गया । राजा चुपचाप घर आये ।
जानना
था कि वह चमत्कार कैसे हुआ , अन्य कवि भला यह सारा
रहस्य कैसे जाने ?
कवि
का एक महत्वपूर्ण गुण होता है कि वो अदृष्ट लेखन यानी के जिसको देखा नही उसका भी
वर्णन करने मे सक्षम होता है!
कवि
तो कालिदास ही थे । उनके मन मेँ स्पष्ट स्फुरणा हुई । और
【" सुतं पतन्तं
प्रसमीक्ष्य पावके "】
इत्यादि
पढ़ गये ।
यह
उनका प्रतिभज्ञान था अतिन्द्रिय ज्ञान था । ऐसा अतिन्द्रिय ज्ञान जिसका हो उसी का
काव्य यथार्थ होता है । प्रेरणादायी होता है ।
अन्तरात्मा तक पहुँचता है । सभास्थ सभी पण्डितोँ ने स्वीकार किया
कि कालिदास ही कवि हैँ । इसी को क्रान्तदर्शन कहते हैँ।