!!•!! बिना औषध के रोगनिवारण !!•!! - Bablu Sharma

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!!•!! बिना औषध के रोगनिवारण !!•!!

!!•!! बिना औषध के रोगनिवारण !!•!!
अनियमित क्रिया के कारण जिस तरह मानव-देह में रोग उत्पन्न होते हैं, उसी तरह औषध के बिना ही भीतरी क्रियाओं के द्वारा नीरोग होने के उपाय भगवान के बनाए हुए हैं।
हम लोग उस भागवत्प्रदत्त सहज कौशल को नहीं जानते इसी कारण दीर्घ काल तक रोगजनित दुःख भोगते हैं। यहाँ रोगों के निदान के लिये स्वरो
दयशास्त्रोक्त कुछ यौगिक उपायों का उल्लेख किया जा रहा है जिनके प्रयोग से विशेष लाभ हो सकता है-
• ज्वर (बुखार) - ज्वर का आक्रमण होने पर अथवा आक्रमण की आशंका होने पर जिस नासिका से श्वास चलता हो, उस नासिका को बंद कर देना चाहिये।
जब तक ज्वर न उतरे और शरीर स्वस्थ न हो जाय, तब तक उस नासिका को बंद ही रखना चाहिए। ऐसा करने से दस-पंद्रह दिनों में उतरने वाला ज्वर पांच-सात दिनों में अवश्य ही उतर जाएगा।
ज्वरकाल में मन-ही-मन सदा चांदी के सामान श्वेत वर्ण का ध्यान करने से अति शीघ्र लाभ होता है।
सिंदुवार की जड़ रोगी के हाथ में बाँध देने से सब प्रकार के ज्वर निश्चय ही दूर हो जाते हैं।
• अँतरिया ज्वर - श्वेत अपराजिता अथवा पलाश के कुछ पत्तों को हाथ से मलकर कपडे से लपेटकर एक पोटली बना लेनी चाहिए और जिस दिन ज्वर की बारी हो उस दिन सवेरे से ही उसे सूंघते रहना चाहिये। अँतरिया-ज्वर बंद हो जाएगा
• सिरदर्द - सिरदर्द होने पर दोनों हाथों की कोहनी के ऊपर धोती के किनारे अथवा रस्सी से खूब कसकर बाँध देना चाहिये। इससे पांच-सात मिनट में ही सिरदर्द जाता रहेगा।
ऐसा बाँधना चाहिये की रोगी को हाथ में अत्यंत दर्द मालूम हो। सिरदर्द अच्छा होते ही बाँहें खोल देनी चाहिए।( सभी प्रकार के सिरदर्द में अच्युताय अमृत द्रव्य एक रामबाण इलाज है)*
सिरदर्द दूसरे प्रकार का एक और होता है, जिसे साधारणतः 'अधकपाली' या 'आधासीसी' कहते हैं। कपाल के मध्यसे बाईं या दायीं और आधे कपाल और मस्तक में अत्यंत पीड़ा मालूम होती है।
प्रायः यह पीड़ा सूर्योदय के समय आरम्भ होती है और दिन चढ़ने के साथ-साथ यह भी बढ़ती जाती है। दोपहर के बाद घटनी प्रारम्भ होती है और सायंतक प्रायः नहीं ही रहती।
इस रोग का आक्रमण होने पर जिस तरफ के कपाल में दर्द हो, ऊपर लिखे अनुसार उसी तरफ की कोहनी के ऊपर जोर से रस्सी बाँध देनी चाहिए। थोड़ी ही देर में दर्द शांत हो जायगा और रोग जाता रहेगा।
दूसरे दिन यदि पुनः दर्द शुरू हो और प्रतिदिन एक ही नासिका से श्वास चलते समय हो तो सिरदर्द मालूम होते ही उस नाक को बंद कर देना चाहिये और हाथ को भी बांधे रखना चाहिए।
'अधकपाली' सिरदर्द में इस क्रिया से होने वाले आश्चर्यजनक फल को देखकर आप चकित रह जायेंगे।
• सर में पीड़ा- जिस व्यक्ति के सर में पीड़ा हो उसे प्रातःकाल शय्या से उठाते ही नासापुटसे शीतल जल पीना चाहिए। इससे मष्तिष्क शीतल रहेगा, सर भारी नहीं होगा और सर्दी नहीं लगेगी यह क्रिया विशेष कठिन भी नहीं है।
एक पात्र में ठंडा जल भरकर उसमें नाक डुबाकर धीरे-धीरे गले के भीतर जल खींचना चाहिए। यह क्रिया क्रमशः अभ्यास से सहज हो जायगी।
सर में पीड़ा होने पर चिकित्सा रोगी के आरोग्य होने की आशा छोड़ देता है, रोगी को भी भीषण कष्ट होता है; परन्तु इस उपाय से निश्चय ही आशातीत लाभ पहुंचेगा।
• उदरामय अजीर्ण आदि - भोजन तथा जलपान आदि जो कुछ भी करना हो वह सब दायीं नासिका से श्वास चलते समय करना चाहिये।
प्रतिदिन इस नियमद्वारा आहार करने से वह बहुत आसानी से पच जायगा और कभी अजीर्ण-रोग नहीं होगा।
जो लोग इस रोग से दुखी हैं वे भी यदि इस नियम के अनुसार प्रतिदिन भोजन करें तो खाई हुई चीज पच जायगी और धीरे-धीरे उनका रोग दूर हो जायगा। भोजन के बाद थोड़ी देर बाईं करवट सोना चाहिए।
जिन्हें समय न हो उन्हें ऐसा उपाय करना चाहिए की भोजन के बाद दस-पंद्रह मिनट तक दायीं नासिका से श्वास चले अर्थात पूर्वोक्त नियम के अनुसार रूईद्वारा बायीं नासिका बंद कर देनी चाहिए। गुरूपाक (भरी भोजन करने पर भी इस नियम से वह शीघ्र पच जाता है।
स्थिरता के साथ बैठकर नाभिमंडल में अपलक (एकटक) दृष्टि जमाकर नाभिकंद का ध्यान करने से एक सप्ताह में उदरामय (उदार-संबंधी) रोग दूर हो जाता है।
श्वास रोककर नाभि को खींचकर नाभि की ग्रंथि को एक सौ बार मेरूदंड से मिलाने पर आमादी उदारामयजनित सब तरह की पीडाएं दूर हो जाती है और जठराग्नि तथा पाचन शक्ति बढ़ जाती है।
• प्लीहा - रात को बिछौने पर सोकर और प्रातः शय्या-त्याग के समय हाथ और पैरों को सिकोड़कर छोड़ देना चाहिए। फिर कभी बाईं और कभी दायीं करवट टेढ़ा-मेढ़ा शरीर करके समस्त शरीर को सिकोड़ना और फैलाना चाहिए।
प्रतिदिन चार-पांच मिनट ऐसा करने से प्लीहा-यकृत (तिल्ली, लिवर) रोग दूर हो जायगा। सर्वदा इसका अभ्यास करने से प्लीहा-यकृत रोग की पीड़ा कभी नहीं पड़ेगी अर्थात निर्मूल हो जायेगी।
• दंतरोग- प्रतिदिन जितनी बार मल-मूत्र का त्याग करे, उतनी बार दांतों की दोनों पंक्तियों को मिलाकर जोर से दबाये रखे। जबतक मल या मूत्र निकलता रहे, तब तक दांतों से मिलाकर दबाये रहना चाहिए।
दो-चार दिन ऐसा करने से कमजोर दांतों की जड़ मजबूत हो जायगी। नियमित अभ्यास करने से दंतमूल दृढ हो जाता है और दांत दीर्घ कालतक काम देते हैं तथा दाँतों में किसी प्रकार की बीमारी होने का कोई भय नहीं रहता।( सभी प्रकार के दांतों के रोगों में अच्युताय दंत सुरक्षा तेल एक सुंदर उपाय है )
• स्नायविक वेदना - छाती पीठ या बगल में - चाहे जिस स्थान में स्नायविक या अन्य किसी प्रकार की वेदना हो तो वेदना प्रतीत होते ही जिस नासिका से श्वास चलता हो उसे बंद कर देने से दो-चार मिनट के पश्चात अवश्य ही वेदना शांत हो जायगी।
(अच्युताय स्पेशल मालिश तेल जोड़ों के दर्द के लिए उत्तम तेल है । अंदरुनी चोट ,मुढमार,पैर मे मोच आना आदि में हल्के हाथ से मालिश करके गरम कपडे से सेंकने पर शीघ्र लाभ होता है।
• दमा या श्वासरोग - जब दमे का जोर का दौरा हो तब जिस नासिका से निश्वास चलता हो, उसे बंद करके दूसरी नासिका से श्वास चलाना चाहिए।
दस-पंद्रह मिनट में दमे का जोर कम हो जायगा। प्रतिदिन ऐसा करने से महीने भर में पीड़ा शांत हो जायगी।
दिन में जितने ही अधिक समय तक यह क्रिया की जायगी, उतना ही शीघ्र यह रोग दूर होगा। दमा के समान कष्टदायक कोई रोग नहीं, दमा का जोर होने पर इस क्रिया से बिना किसी दवा के बीमारी चली जाती है।
• वात - प्रतिदिन भोजन के बाद कंघी से सर झाडना चाहिए। कंघी इस प्रकार चलानी चाहिये जिसमें उसके कांटे सर को स्पर्श करें। उसके बाद लगाकर अर्थात दोनों पैर पीछे की और मोड़कर उनके ऊपर पंद्रह मिनट बैठना चाहिए।
प्रतिदिन दोंनों समय भोजन के बाद इस प्रकार बैठने से कितना भी पुराना वात क्यों न हो निश्चय ही अच्छा हो जायगा।
यदि स्वस्थ आदमी इस नियम का पालन करे तो उसे वातरोग होने की कोई आशंका नहीं रहेगी।(अच्युताय संधिशूलहर योग चूर्ण इससे जोड़ो व कमर का दर्द ठीक होता है ।हड्डियाँ व नसे मजबूत बनती है । गठिया,मधुमेह,सायटिका व मोटापे आदि में लाभदायी ।)
• नेत्ररोग - प्रतिदिन सवेरे बिछौने से उठते ही सबसे पहले मुंह में जितना पानी भरा जा सके उतना भरकर दूसरे जल से आँखों को बीस बार छींटे मारकर धोना चाहिए।
प्रतिदिन दोनों समय भोजन के बाद हाथ-मुंह धोते समय कम-से-कम सात बार आँखों में जल का छींटा देना चाहिए।
जितनी बार मुँह में जल डाले उतनी बार आँख और मुँह को धोना न भूले।
प्रतिदिन स्नान-काल में तेल मालिश करते समय पहले दोनों पैरों के अंगूठों के नखों को तेल से भर देना चाहिए और फिर तेल लगाना चाहिए।
ये नियम नेत्रों के लिए विशेष लाभदायक हैं। इनसे दृष्टिशक्ति तेज होती हैं, आँखे स्निग्ध हैं और आँखों में कोई बीमारी होने की संभावना नहीं रहती।
नेत्र मनुष्य के परमधन हैं। प्रतिदिन नियमपालन में कभी आलस्य नहीं करना चाहिए।

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