आज्ञाचक्र
का स्थान-भ्रू-मध्य,
दल-दो,
वर्ण-श्वेत,
अक्षर-हं, क्षं।
तत्त्व-महः,
बीज-ॐ,
वाहन-नाद,
देव-ज्योतिर्लिंग,
देवशक्ति-हाकिनी,
यंत्र-लिंगाकार,
लोक-तपः,
ध्यान
का फल-
सर्वार्थ
साधन। यह साधना का द्वार है।
इसके
जागने के पश्चात ही साधना का क्रम आगे बढ़ता है, क्योंकि
साधक इस सूक्ष्म आँख से सब कुछ देख एवं सुन सकने में समर्थ हो जाता है।