!!•!! मूर्ति पूजा और
मंदिर का वैज्ञानिक अर्थ जानिए !!•!!
मूर्ति पूजा आज कई
लोग मूर्ति पूजा पर सवाल उठाते हैं और कहते हैं की यह तो अन्धविश्वास है या मंदिर
क्यों बनाये हैं , ईश्वर तो एक है, हिन्दू इतने
ईश्वर को क्यों मानते हैं।
इसका जवाब है सभी
हिन्दू भी एक ही ईश्वर को मानते हैं।
मंदिर जाना पहला क्रम
है ईश्वर को जानने का
क्योंकि सभी अचानक से
सभी वेद पुराण एवं उनके रहस्य उनका विज्ञान नहीं समझ सकते इसलिए शुरुआत यहाँ से
होती है जिससे धीरे धीरे जिज्ञासा बढती जाती है और व्यक्ति ईश्वर जो की सत्य है उन
तक पंहुचा जाता है।

यदि उस बच्चे को पहली
कक्षा में ही पूरा वाक्य शब्दों और अक्षरों को मिलाकर बनाने को दे दिया जाए या एक
पूरा निबंध लिखने को दे दिया जाए तो सोचिये क्या होगा , वह
स्कुल छोड़ देगा क्योंकि उसे कुछ समझ ही नहीं आएगा।
【इसी तरह बचपन
से बच्चे पहले मंदिर देखते हैं फिर सवाल पूछते हैं यह कौन है फिर उनकी पुस्तक पढ़ते
हैं रामायण ,
गीता , फिर आगे बढ़ते हैं तब पुराण फिर उपनिषद
और फिर जो सबसे अधिक जिज्ञासु होते हैं वही वेद तक पहुच पाते हैं】
तथा उसे समझ कर
ब्रम्ह ज्ञान को प्राप्त करते हैं इस तरह वे मूर्ति को मूर्ति के रूप में नहीं
बल्कि ईश्वर के रूप में देखते हैं, जैसे मुस्लिम काबा के पत्थर में और इसाई क्रॉस में
, भले ही सामने मूर्ति हो पर हिन्दू पूजा उसी एक शक्ति की
करते हैं जो सर्वव्यापी है।
इसीलिए सिर्फ हिन्दू
धर्म में ऐसा कहा गया है के ईश्वर सबमे है हर जगह है , जबकि
दुसरे धर्मो में कहा गया है ईश्वर ने सब बनाया है ।
यह वाक्य सुनने में
साधारण लगते हैं पर बहुत बड़ा अंतर है इनमे हम ईश्वर को शक्ति मानते है जो हर जगह
है जिसे न बनाया जा सकता है ना ख़त्म किया जा सकता है जो एक से दुसरे रूप में
परिवर्तित होती रहती है जैसे आत्मा शरीर बदलती है।
आज विज्ञान भी यही
कहता है “शक्ति का सिद्धांत , इसे न बनाया जा सकता है जा ख़त्म
किया जा सकता यह एक रूप से दुसरे में परिवर्तित होती है “।
हम उसी को भगवान कहते हैं हो सकता है विज्ञान कॉस्मिक एनर्जी कहे या कुछ भी और यदि
ईश्वर सभी में है तो कुछ भी पूजे मूर्ति या पत्थर पूजा ईश्वर की ही होगी।
मन्दिर क्यों बनाए
जाते हैं :-
अब रही बात मंदिर की
तो मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ा विज्ञान है मंदिर कोई साधारण ईमारत नहीं होता, इसमें
हर जगह का एक मतलब है
मंदिर में ईश्वर को
शक्ति की तरह माना जाता है।
【गर्भगृह को
शरीर के सर (चेहरा) की तरह माना गया है ,】
【गोपुरा (
मुख्य द्वार ) इसे शरीर के चरण या पैर माने गए हैं ,】
【शुकनासी को
नाक ,】
【अंतराला (
निकलने की जगह ) इसे गर्दन माना गया है ,】
【प्राकरा: (
ऊँची दीवारें) इन्हें शरीर के हाथ माना गया है 】
【इसी तरह सारा
मंदिर और उसमे हर जगह एक शरीर के अंग की तरह निर्धारित है 】
और 【ह्रदय या दिल में ईश्वर की मूर्ति रखी हुयी रहती है।】
【इसका
अभिप्राय यह है के हर मनुष्य के शरीर में ईश्वर है जो उसके ह्रदय में निवास करता
है उसे कही और खोजने की आवश्यकता नहीं अपने दिल की बात सुनो और सत्कर्म करो आपको
मोक्ष जरुर मिलेगा।】
【इसका ( मंदिर
के वास्तुशास्त्र का ) एक पहलू यह है के शरीर तो बन गया दिल भी पर उसे चलाने के
लिए शक्ति या आत्मा कहाँ से आएगी 】
【उसी के आगे
हम ध्यान लगाते हैं तो मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा होती है जिससे उस शक्ति से हम
और हमारी शक्ति से वो दोनों जुड़ जाते हैं।】
यही हिन्दू धर्म में
ईश्वर का स्वरुप है , जिसे कई व्यक्ति जो अपने आपको विज्ञान का छात्र
कहते हैं वे मूर्ति पूजा और मंदिर का ढोंग कहते हैं अंधविश्वास कहते हैं।
जबकि असल में देखा
जाए तो आज का विज्ञान और साइंस तथा उसके सिद्धांत इनसे बड़ा अंधविश्वास कोई नहीं जो
एक व्यक्ति ने किताब में लिख दिया उसे मान लेना बिना सवाल उठाये करोडो बच्चों को
पढा देना।
मेडिकल में कुछ भी
दवाइयां दे देना।
किसी ने कहा पृथ्वी
चपटी है तो वैसी मान ली सदियों तक और सब लोगों को वही सिखाया भी गया अब कहा गोल है
तो वैसी मान ली कभी कहते हैं ब्लैक होल है कभी कहते हैं नहीं।
कभी डार्विन का
सिद्धांत नकार दिया जाता है कभी मान लिया जाता है। अभी तक यह भी पता नहीं लगा पाए
के ब्रम्हाण कैंसे बना था।
यह 1500 साल
पुराना पाश्चात्य विज्ञान उन वेदों और उपनिषदों के ज्ञान को नकारता और अंधविश्वास
कहता है जो करोडो सालों के अनुभव के बाद ऋषियों ने लिखे हैं।आगे आपकी मर्जी आप
चाहें जिसे सच माने।