सावधान
रेलवे में चलती है अलग भाषा..
जेब
कतरो की सांकेतिक भाषा अंजाम देती है अपराध को
भुसावल
मंडल रेलवे के अंतर्गत इन दिनों जेब कतरो की जो सांके तिक भाषा उभरकर आ रही है। वह
अपने आप में निर्माण की गई संवाद की एक शैली बनी हुई है।
संवाद
की प्रक्रिया के लिए संकेतो को यदि सकारात्मकता के साथ जोडा जा सकता है तो वही इन
संके तो व शब्दों को अपराध के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।
भुसावल
मंडल में रेलवे के अंतर्गत चोरी व जेब काटने की घटनाओं का प्रमाण बढता ही जा रहा
है। इसे रोकने के लिए भले ही भरसक प्रयास हो किन्तु जेब कतरो की इजाद की गई भाषा
का जब तक गंभीर अध्ययन नहीं होगा तब तक जेब कतरी की घटनाओं में कमी नहीं आ पाएगी।
टे्रन
में यात्रीयों के सामान पर हाथ साफ करते हुए यदि कोई पुलिस कर्मी आ जाता है तो कहा
जाता है की मख्खी आ गई या फिर ढोला आ गया।
जेब
कतरो की भाषा में १ हजार के नोट को थान, १०० रूपए के
नोट को गज, ५०० रूपए के नोट को गांधी बापू, फुटकर पैसो को १० या २० पाव, ५० रूपए को आधा गज कहा
जाता है।
इसी
प्रकार से जेबो के लिए भी शब्दकोश सा तैयार किया गया है। यह भाषा शैली खंडवा, बुराहनपुर से होते हुए चालीसगांव, मनमाड, पश्चिम रेलवे मार्ग पर अमलनेर, दोंडाईचा, नंदुरबार, नवापुर होते हुए सुरत तक प्रभाव रखती है।
इस
भाषा व जेब कतरी का सर्वाधिक प्रयोग सुरत लाईन पर ही होता है। जहां पर पैंट की
पिछली जेब को पुठ्ठा, उपर की जेब को उपली यां सित्तल, अंदर की जेब को अंटी यां वाच, साईड की जेब को सद्दर
कहा जाता है।
उंगली
के ब्लेड को ताश यां चाबी, चाकू को घाव यां काव, देख
रहा है को झड रहा है, औरत देख रही तो छावी झड रही है,
औरत को नथनी यां छावी, लडके को धुर, बुजूर्ग व्यक्ती को सुड्डा, सोए हुए व्यक्ती को
मुरदे का खाया है, खडे व्यक्ती को जिंदा का खाया है,
मोबाईल
चोरी पर डिब्बा मिला है, पर्स आदि के लिए चमडे का सौंदा, चोरी यां जेबकतरी की घटना पुरी होने के बाद दुसरे जेब कतरे को सांकेतीक
भाषा में छोडने की बात कहते हुए टेक दे शब्द का प्रयोग किया जाता है।
यदि
घटना क्रम में कोई सचेत हो जाता है तो उसे धुर बीली कहकर निकल लिए जाता है।
जेबकतरो के पांचो उंगलीयों पर ब्लेड लगाये रहते है। जिन से बडी सहजता के साथ जेब
काटी जाती है। दो समुहों में पैसे यां चोरी का माल बाटने के लिए गुड्डी कर लेंगे
शब्द का प्रयोग कर खिसक लिया जाता है।
इस
सारी प्रक्रिया में पहले स्थिति का मुआइना करने के लिए एक जेबकतरो की टीम पहुंचती
है फिर वह चीजों व रकम की स्थिती का अवलोकन करते हुए अपनी इसी सांकेतीक भाषा में
दुसरी टीम को सारे हालात मुसाफिरो के सामने ही बयान कर देते है।
जिसे
मुल अंजाम तक पहुंचा दिया जाता है। बेचारा मुसाफिर समझ भी नहीं पाता की उसके पडोस
में बैठा व्यक्ती जेब काटने या चोरी का सारा मार्ग प्रशस्त कर गया है। बाद में टेक
दे शब्द सुनने के बावजूद भी मुसाफिर यह नहीं समझ पाता की उसका सामान चोरी हो गया
है और उसे छोड दिया जाए।
सुरत
लाईन पर इस तरह की वारदातो का यह आलम है की पलक झपकते ही यात्री का सामान चोरी हो
जाता है।
विगत
कुछ दिनों में मोबाइल चोरी की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धी हुई है।पेचीदा जांच, शिकायत व्यवस्था के कारण यह घटनाएं दर्ज नहीं हो पाती।
क्योंकी
रेलवे पुलिस के नियम, स्थानीय पुलिस के नियम, घटना
स्थल, पंचनामा सभी पेचीदा बाते पीड़ित को और भी जटील अवस्था
में जोड देती है।
जिसके चलते भुसावल मंडल व पश्चिम रेलवे इन स्टेशनों पर यह सांकेतीक
भाषा फल फूल रही है।