ये 14 लोग
जीवित होकर भी मरे समान ही होते हैं...
मृत्यु सत्य है। देह
एक दिन खत्म हो जानी है, यह तय है। मृत्यु से बड़ा कोई सत्य नहीं है। लेकिन
कोई भी इंसान देह के निष्क्रिय हो जाने मात्र से नहीं मरता। कई बार जीवित रहते हुए
भी व्यक्ति मृतक हो जाता है।
रामचरित मानस के
लंकाकांड में इसका बहुत सुंदर वर्णन मिलता है। रावण-अंगद संवाद में ये चौपाइयां
आती हैं।
【जौं अस करौं
तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥
कौल कामबस कृपिन
बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥
सदा रोगबस संतत
क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥
तनु पोषक निंदक अघ
खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी॥】
तुलसीदास जी ने 14 तरह
के लोगों के मृत समान ही माना है। अगर हममे ये एक भी दुर्गुण है तो हम भी जीते जी
मृतक के समान हैं।
१- वाम मार्गी - जो
पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो।
नियमों,
परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो।
२- कामवश – अत्यंत
भोगी, विषयासक्त (संसार के भोगो) ने उसे मार दिया हैं। जिसके
मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती। ऐसा प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर
जीता है।
३- कंजूस - कंजूस मरा
हुआ हैं। जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में, आर्थिक रुप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने
में हिचकता हो। दान करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मरे समान ही है।
४- विमूढ़ - अत्यंत
मूढ़ (मूर्ख) मरा हुआ हैं। जिसके पास विवेक बुद्धि नहीं हो। जो खुद निर्णय ना ले
सके। हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा
व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत के समान ही है।
५- अति दरिद्र -
गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म विश्वास, सम्मान और
साहस से हीन हो वो भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ हैं। दरिद्र व्यक्ति को
दुत्कारो मत क्योकि वो पहले ही मरा हुआ होता हैं।
६- अजसि - जिसको
संसार मे बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ हैं। जो घर, परिवार,
कुटुंब, समाज, नगर या
राष्ट्र किसी भी ईकाइ में सम्मान नहीं पाता, वो व्यक्ति मरे
समान ही होता है।
७- अति बूढ़ा -
अत्यंत वृद्ध भी मरा हुआ होता है क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है।
शरीर और बुद्धि दोनों असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वो और उसके परिजन
ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।
८- सदा रोगवश - जो
निरंतर रोगी है वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है।
नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मुक्ति का कामना में लग जाता है। जीवित होते
हुए भी स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।
९- संतत क्रोधी - 24 घंटे
क्रोध में रहने वाला भी मृत प्रायः ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना उसका
काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते
हैं। जिसके मन और बुद्धि पर नियंत्रण नहीं वो जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता
है।
१०- विष्णु विमुख – परमात्मा
का विरोधी, लघुता ग्रंथी से पीड़ित है। जो ये सोच लेता है कि
कोई परमतत्व है ही नहीं। हम जो करते हैं वो होता है। संसार हम ही चला रहे हैं। जो
परमशक्ति में आस्था ना रखता हो ऐसा व्यक्ति मृत माना जाता है।
११- संत और वेद
विरोधी –
जो संत, ग्रंथ, पुराण और
वेदों का विरोधी है वो भी मरा हुआ हैं।
१२- तनु–पोषक –
ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह आत्म संतुष्टि के लिए जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो। जो
खाने-पीने, वाहनों में स्थान, हर बात
में सिर्फ ये सोचता हो कि सारी चीजें पहले मुझे ही मिल जाएं, बाकि किसी को मिले ना मिले। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते
हैं।
१३- निंदक - अकारण
निंदा करे वो भी मरा हुआ है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो
किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास
भी बैठे तो सिर्फ किसी ना किसी की बुराई ही करे। वो इंसान मरा है !
१४- अघ खानी – जो
पाप से अर्जित धन से अपना और परिवार को पोषण करे, वो व्यक्ति
भी मरे समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा
मेहनत और इमानदारी से कमाई करके खानी चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है।