जी हां, हमारे यहां बेईमानी, भ्रष्टाचार
और खुली
लूट का यही आलम हैं. इससे पहले कि कोई दूसरा लूट ले. हम ख़ुद ही ख़ुद को
लूट रहे हैं !
जुर्म, वारदात, नाइंसाफ़ी, बेईमानी
और भ्रष्टाचार का
सैकड़ों साल पुराना क़िस्सा नई पोशाक पहनकर एकबार फिर हमारे दिलों पर दस्तक
दे रहा है. रगों में लहू बन कर उतर चुका भ्रष्टाचार का कैंसर. आखिरी ऑपरेशन
की मांग कर रहा है. अवाम सियासत के बीज बोकर हुकूमत की रोटियां सेंकने
वाले भ्रष्ट नेताओं के मुस्तकबिल का फैसला करना चाहती है. ये गुस्सा एक
मिसाल है कि हजारों मोमबत्तियां जब एक मकसद के लिए एक साथ जल उठती हैं तो
हिंदुस्तान का हिंदुस्तानियत पर यकीन और बढ़ जाता है.
बेईमान सियासत
के इस न ख़त्म होने वाले दंगल में अक़ीदत और ईमानदारी दोनों थक कर चूर
हो चुके हैं. मगर फिर भी बेईमान नेताओं, मंत्रियों, अफसरों
और बाबुओं की
बेशर्मी को देखते हुए लड़ने पर मजबूर हैं. बेईमान और शातिर सियासतदानों की
नापाक चालें हमें चाहे जितना जख़्मी कर जाएं. हमारे मुल्क के 'अन्ना' हजारों
के आगे दम तोड़ देती हैं.