प्रकृति के इस रूप से सीखें विपरित परिस्थितियों में जीना.. - Bablu Sharma

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प्रकृति के इस रूप से सीखें विपरित परिस्थितियों में जीना..


संसार वह दलदल है, जिसमें उतरने पर आप डूबने की तैयारी रखें। जिनके पास आत्मबल होगा, वे आकंठ डूबे होंगे, लेकिन सांस लेने के लिए नाक के छिद्र बचे रहेंगे और दुनिया देखने के लिए आंखें सलामत होंगी। जो पूरे डूब जाते हैं, वे संसार का आनंद नहीं ले पाते और संसार को कोसते रहते हैं।
जब कभी आपको दुनिया काटने लगे, कमल के फूल को हाथ में लीजिए और विचार करिए इसके उगने और खिलने की क्रिया पर। जो खूबसूरत चीज आपके हाथ में है, वह सौंदर्य कीचड़ से निकलकर आया है। कीचड़ यानी संसार की विपरीत परिस्थितियां।
कीचड़ में कोई नहीं रहना चाहता, लेकिन जीवन का सौंदर्य पकड़ना हो तो विपरीत स्थितियों में जीना आना चाहिए। हमारी केंद्रीय सामथ्र्य ऐसी रहे कि हम संसार में रहकर भी संसार को अपने भीतर न आने दें। चूक यहां हो जाती है कि हम समझते हैं धन, भौतिक सफलताएं, सुख ही संसार है।
हमें यह गलतफहमी हो जाती है कि यह सब संसार में ही मिलते हैं या इन्हीं से संसार प्राप्त होता है, जबकि ऐसा है नहीं। आत्मबल का अर्थ है विवेक से ली जाने वाली क्षमता। संसार के भोग और अध्यात्म के योग में एक संतुलन के साथ जीवन में उतरना चाहिए। साधु-संतों की संगत में जब जाएं तो लगातार इस बात पर निगाह रहे कि वे संसार का उपयोग किस प्रकार कर रहे हैं।
अगर सतही तौर पर देखेंगे तो पाएंगे कि वे भी भोग रहे हैं और यहीं से चूक हो जाएगी। थोड़ा गहराई में उतरकर पूर्वग्रह से हटकर देखिए तो आप पाएंगे कि वे संसार में हैं, संसार उनमें नहीं है। इसीलिए उनके भोग में भी योग होगा और हमारे योग में भी भोग रहेगा।

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