शायद इसको पढ़ कर आंखे खुल जाये... - Bablu Sharma

Everyone needs some inspiration, and these motivational quotes will give you the edge you need to create your success. So read on and let them inspire you.

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शायद इसको पढ़ कर आंखे खुल जाये...


#कन्नौज उत्तर भारत के सबसे समृद्ध शहरों में से एक था, बौद्ध विहारों और शिवालयों की ऊंची अट्टालिकाओं को देख लोग दंग रह जाते जैन मंदिर तो ऐसे के जिन्ह देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते, चारों और वैभव ही वैभव..... उत्तर भारत का व्यापार बिना कन्नौज से गुजरे पूरा न होता.....
वो 1192 ई. का एक दिन था कन्नौज जश्न में डूब था, चारों और दीप जलाए गए थे, भाट अपने राजा का स्तुतिगान कर रहे थे, राजा के दरबारी राज भोज का आनंद ले रहे थे, मदिरा, नृत्य, गायन सब उत्सव को अद्वितीय बना रहे थे.....
आखिर उत्सव होता भी क्यों नही कन्नौज का सबसे बड़ा शत्रु पराजित हुआ था उनके पचास हज़ार योद्धा खेत रहे थे उनकी प्रजा का कत्लेआम हुआ था, चौदह हज़ार स्त्रियों को पकड़ के दासी बना लिया गया था और जिन्ह बर्बर बलात्कार के बाद मृत्यु मिली उनकी संख्या असंख्य थी, थानेश्वर से दिल्ली तक काल स्वयं नग्न नृत्य कर रहा था......
कन्नौज का जश्न मनाना तो बनता ही था क्यों के उन्ह इस विजय उत्सव को मनाने के लिए अपना एक भी योद्धा नहीं खोना पड़ा था, बिना अपने किसी एक सैनिक का रक्त बहाए उन्ह ये उत्सव मनाने का अवसर मिला था........
उन्हें ये अद्वितीय अवसर आखिर मिला कैसे????
पवित्र महीना अभी बीता ही था....और अपने रसूल का हुक्म ले शांतिदूत चारों दिशाओं में हाथों में नंगी तलवारें ले शांति संदेश फैलाने निकल पड़े थे.....उन्हीं में से एक था मोहम्मद गौरी जो हिंदुस्तान में हार की कड़वाहट भरी बेचैनी के साथ जी रहा था.....पृथ्वीराज के नेतृत्व में एकत्रित हिन्दू सेना से बड़ी मुश्किल से वो प्राण बचा भाग था वो बस बरस भर पहले पर अब मौका अलग था .....हिन्दू अपनी आदत के अनुरूप अपने अपने स्वार्थों में बट चुका था.........अन्य राजा पृथ्वीराज चौहान को सबक सिखाना चाहते थे, उन्ह पिछली जीत से पृथ्वीराज को मिली ख्याति बर्दाश्त नहीं थी....ठीक है ऐसा ही वीर धनुर्धर है तो जीत के दिखाए हमारे बिना....का भाव प्रबल था सबके भीतर........!
मैदान वही था सेनाएं आमने सामने थीं आमने सामने थे मोहम्मद और पृथ्वीराज..... बस समय बदल गया था......भीषण युद्ध में पृथ्वीराज हार गए....हिंदुस्तान की छाती पर इस्लामी परचम लहरा उठा....रणभूमि वीरगति पाये धर्मयोद्धाओं से पट गयी....और आम जन दासता का दुर्भाग्य पा गए.......!
पर कन्नौज इस हार का जश्न मना रहा था कई अन्य राजा भी इसमें शामिल थे....पृथ्वीराज....शब्दभेदी धनुर्धारी.... देखा हमसे प्रतिद्वंदिता का हश्र....हमारे शत्रु की हार हुई.....इन तानों से गूंजता कन्नौज जश्न मना रहा था........!
दूसरी तरफ तराईन को लाशों से पाट.... और दिल्ली को रौंद.....मुहम्मद गौरी भी जश्न मना रहा था भारत उसका ग़ुलाम बन चुका था....!
ठीक नौ माह के बाद गौरी फिर एक बार युद्ध के मैदान में था इस बार मैदान चंदवार का था वर्ष 1193 ई. का और गौरी के सामने था #जयचंद कन्नौज का राजा.....परिणाम हार और जयचंद की मृत्यु!!!
कन्नौज का जश्न हाहाकार में बदल चुका था .....खुद जयचंद की पोतियों को गौरी की गुलामी को विवश होना पड़ा, उसके हरम में पहुंचना पड़ा....! कन्नौज के शिवालय, बौद्ध मठ, जैन मंदिरों को ध्वस्त करने में गौरी ने कोई भेद नही किया.....सभी ज़मींदोज़ कर दिए गए!.....विजेताओं के कन्नौज को तार तार कर दिया....तब उत्तर भारत का सबसे समृद्ध शहर कभी अपना वैभव दोबारा नहीं पा सका......
कन्नौज ने #पृथ्वीराज की हार पर अपना अंतिम जश्न मनाया था।।।।।
इतिहास खुदको दोहराता है, जगहों के नाम युद्ध के क्षेत्र बदल जाते हैं......सामने अब भी गौरी ही है.....पृथ्वीराज अकेले आज भी मृत्यु को आलिंगन करने को खड़ा है.....जयचंद जश्न मना रहा है.......पर बेटियां जयचंद की भी नहीं बचनी.... मृत्यु और हार उसकी भी निश्चित है....कैराना सबके लिए एक सबक है शायद अंतिम सबक!!!!

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