यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् |
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च: दुष्कृताम, धर्मं संस्थापनार्थाय सम्भावामी युगे युगे " ||
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च: दुष्कृताम, धर्मं संस्थापनार्थाय सम्भावामी युगे युगे " ||
प्रिय मित्रों ,
आज तो जन्मोत्सव का दिन है , आनंद आनंद है ,केवल दुष्ट ही कष्ट में है .
जब आदमी निरंतर सद्विचार और सद्कार्य का अनुपालन करता है , धर्म सम्मत
कार्य करता है और अन्याय का विरोध करता है तो उसके आचरण से जन मानस
प्रभावित होता है ,व्यक्ति का यह प्रभाव उसके प्रति आस्था का सृजन करती है
और शनैः शनैः यही आस्था एक आदर और सम्मान का रूप ले लेती है जो उस व्यक्ति
को समाजिक बिश्वास के केन्द्र में ले जाती है और अब इस स्वीकार्यता के बल
से ही उसके सभी कार्य सरल और सफल हो जाते हैं और लोगों को आदमी में भगवान
दृष्टिगोचर होने लगता है .
भगवान श्रीकृष्ण मानव तन में इन्हीं सम्बलों से अपने देवत्व को सिद्ध किया और सम्पूर्ण जगत का कल्याण हुआ .
एकबात और आस्थाएं एक अदृष्य अस्त्र है जो आपद-बिपद काल में हमें सुख-दुःख
की अनुभूतियों में जीवन को ईश्वरालम्ब का आधार देती है और मानव मन
चिन्तामुक्त जीवन-यापन करता जाता है .
यही कारण है कि अत्यन्त कष्ट और कंस के अत्याचार से त्रस्त उस् काल का समाज
श्रीकृष्ण में अपनी श्रद्धा का समर्पण कर न केवल जी उठा अपितु हँसने
-खेलने और गाने लगा .
ईश्वर के चरणारविन्द में अपनी आस्था समेटकर रखें और आजमाएं कि जीवन कितना सरल है .
---------- जय श्रीकृष्ण ---------------
ईश्वर के चरणारविन्द में अपनी आस्था समेटकर रखें और आजमाएं कि जीवन कितना सरल है .
---------- जय श्रीकृष्ण ---------------